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आख़िर कैसे दिखते होंगे डायनासोर? क्या खाते-पीते थे? कहां रहते थे? कैसे ज़िंदगी बिताते थे? Amazing fact about Dinasour- Anmol Subichar

About Dinosour

Amazing Fact
Anmol Subichar
हम सब ने डायनासोर्स पर बनी फ़िल्में देखी हैं. 'जुरैसिक पार्क', 'द लॉस्ट वर्ल्ड', 'गॉडज़िला', 'द गुड डायनासोर', वग़ैरह.


किसी में भयानक तो किसी फ़िल्म में मासूम डायनासोर दिखाए गए हैं. किसी में उड़ने वाले तो किसी में कूदने-फांदने वाले डायनासोर. मगर ये सब तो Fantacy की दुनिया के डायनासोर हैं. असल में तो किसी इंसान ने कभी भी डायनासोर देखा नहीं.

तो आख़िर कैसे दिखते होंगे डायनासोर?
 क्या खाते-पीते थे?
 कहां रहते थे?
 कैसे ज़िंदगी बिताते थे?

असल में डायनासोर, इंसान के धरती पर आने के लाखों साल पहले ही रहते थे. बाद में उनकी नस्ल का ख़ात्मा हो गया. तो किसी भी इंसान ने कभी डायनासोर को देखा नहीं।

फ़िल्मों में दिखाए गए डायनासोर या फिर आर्ट में दिखने वाले डायनासोर, असल में हमारी कल्पना की उपज हैं. सच्चाई से इनका कोई वास्ता नहीं है।

मगर, वैज्ञानिक, धरती के अलग-अलग हिस्सों में मिलने वाले इनके जीवाश्मों से डायनासोर के बारे में जानकारी जमा करने की कोशिश में लगे हुए हैं।

दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से डायनासोर के कई कंकाल मिले हैं. कभी अंडे, कभी हड्डी, तो कभी पंख, कभी भ्रूण के अवशेष, वैज्ञानिकों ने खोज निकाले हैं. इनकी मदद से डायनासोर की तस्वीर गढ़ने की कोशिश की है।

इन कोशिशों से एक बात तो पक्के तौर पर कही जा सकती है कि डायनासोर, बहुत ही शानदार जानवर थे. उनकी नस्ल में बहुत बड़े आकार के टाइटैनोसॉर्स भी थे और शातिर शिकारी माने जाने वाले छोटे क़द के 'वेलोसिरैप्टर' भी थे.


कुल मिलाकर डायनासोर्स के बारे में अब तक इंसान ने जो जानकारी जुटाई है. उससे कई रोमांचक फ़िल्मों के प्लॉट निकल सकते हैं।

आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि डायनासोर के बारे में सबसे सटीक जानकारी उनके मल के जीवाश्मों से जमा की गई है. वैज्ञानिक डायनासोर के मल के इन अवशेषों को 'कॉप्रोलाइट' कहते हैं।

ज़रा सोचिए, करोड़ों बरस पहले डायनासोर ने धरती पर मल त्याग किया. आज वैज्ञानिक उनके इस अवशेष से उनका ख़ाका बुनने की कोशिश कर रहे हैं।

ऐसी ही एक वैज्ञानिक हैं अमरीका की कोलोराडो यूनिवर्सिटी की करेन शिन. वो पिछले 25 सालों से डायनासोर के मल के जीवाश्म पर रिसर्च कर रही हैं।

करेन कहती हैं कि दुनिया में डायनासोर के कॉप्रोलाइट मिलने बहुत मुश्किल हैं. मगर जो भी मिलते हैं, उनसे डायनासोर के खान-पान के बारे में दिलचस्प जानकारी मिलती है।

फ़िल्में देखकर हम सोचते हैं कि डायनासोर या तो पत्तियां खाते थे या फिर मांस. मगर करेन ने पता लगाया है कि डायनासोर की कई नस्लों में, लकड़ी खाने का भी चलन था।
इसके सबूत उन्हें डायनासोर के मल के जीवाश्म से मिले हैं. हालांकि उन्हें मांसाहारी और शाकाहारी दोनों तरह के डायनासोर के सबूत भी मिले हैं।

करेन मानती हैं कि डायनासोर हमेशा लकड़ी खाते रहे हों, ऐसा शायद नहीं था. उनकी ये आदत मौसमी थी. यानी किसी ख़ास सीज़न में डायनासोर फफूंद लगी लकड़ियां खाते रहे होंगे, ताकि उन्हें एनर्जी मिलती रहे।

वैज्ञानिकों के हिसाब से डायनासोर जिस युग में रहते थे उस वक़्त धरती पर ज़्यादा घास-फूस नहीं थी. ऐसे में शाकाहारी जानवरों को अपना पेट भरने के लिए लकड़ी खाने को मजबूर होना पड़ा होगा.

वैज्ञानिकों को चार या पांच डायनासोर्स के पेट के जीवाश्म भी मिले हैं. इनमें से कुछ के पेट में तो फल के अवशेष मिले और कुछ के पेट में चीड़ के कांटे भी मिले.

जिस विधा में वैज्ञानिक डायनासोर के बारे में पढ़ाई करते हैं उसे 'पैलियोबायलॉजी' या 'जीवाश्म जीव विज्ञान' कहते हैं.

बरसों तक हमें डायनासोर के बारे में बहुत कम जानकारी थी. ज़्यादातर कल्पना की उपज थी.
मगर बीसवीं सदी के सत्तर के दशक में अमरीकी वैज्ञानिक जैक हॉर्नर ने डायनासोर के जीवाश्म का ख़ज़ाना खोज निकाला था, अमरीका के राज्य मोंटाना में, हॉर्नर के हाथ लगे डायनासोर के अंडे, भ्रूण और बच्चों के कंकाल. इस जगह को वैज्ञानिकों ने 'एग माउंटेन' का नाम दिया है.

वॉशिंगटन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम के मैट करानो कहते हैं कि हॉर्नर की खोज कुछ यूं थी जैसे हमारे हाथ कोई बड़ा ख़ज़ाना लग गया. जिसमें डायनासोर के अंडे थे, बच्चे थे, पेट में पल रहे बच्चों के कंकाल थे और बड़े डायनासोर की हड्डियां भी थीं. मानो हम डायनासोर की किसी ख़ुफ़िया गुफ़ा में जा पहुंचे हों.

कंकाल के इस ख़ज़ाने की मदद से डायनासोर को समझने में इंसान को काफ़ी मदद मिली है. पता चला है कि डायनासोर अपने अंडों की बहुत देख-भाल करते थे. और, अंडों से चूज़े निकलने के बाद भी उन पर कड़ी निगरानी रखी जाती थी, ताकि कोई नुक़सान न हो. ये कुछ-कुछ आज के परिंदों के बर्ताव जैसा है.

अमरीकी वैज्ञानिक मैट करानो कहते हैं कि अंडों के मिलने के बाद डायनासोर की ज़िंदगी से जुड़े कई पहलुओं पर से धूल छंटी है. मसलन, वो बचपन में कैसे दिखते थे और बड़े होकर कैसे बन जाते थे.


अंडों से डायनासोर के नर या मादा होने का भी पता चल जाता है. पहले सिर्फ़ कंकाल की मदद से ऐसा करना मुश्किल था.

पिछले तीस सालों में जीवाश्म जीव विज्ञान या 'पैलियोबायलॉजी' की खोजबीन की वजह से डायनासोर्स के बारे में कई जानकारियां सामने आई हैं.

कई डायनासोर्स के कंकाल में पंख भी मिले हैं. ये उन्हें आज के परिंदों का रिश्तेदार साबित करते हैं. हालांकि ये बात साफ़ नहीं है कि डायनासोर्स अपने पंख का इस्तेमाल उड़ने के लिए करते थे या फिर मादा को रिझाने के लिए.

वैसे पहले पहल पंख वाले डायनासोर, 'आर्कियोप्टेरिक्स' का पता आज से क़रीब डेढ़ सौ सालों पहले चला था. बरसों तक वैज्ञानिक मानते रहे कि डायनासोर की सिर्फ़ एक नस्ल पंखों वाली थी. मगर साल 1990 में चीन में मिले डायनासोर के पंखों के कंकाल ने इस सोच को पूरी तरह बदल दिया.


वैज्ञानिक मानते हैं कि पंख होने के बावजूद ज़्यादातर डायनासोर उड़ नहीं पाते रहे होंगे. तो अगला सवाल ये उठता है कि आख़िर इन पंखों का उनके लिए काम क्या था?

अमरीकी वैज्ञानिक मैट करानो कहते हैं कि पंखों की मदद से शायद वो एक दूसरे को संदेश देते होंगे, आने वाले ख़तरे का. या फिर, नर डायनासोर, अपनी मादा साथी को लुभाने के लिए इनका इस्तेमाल करते रहे होंगे.

नए कंकालों की मदद से हमें डायनासोर की चमड़ी के बारे में भी कुछ-कुछ अंदाज़ा हुआ है. ऐसा लगता है कि ज़्यादातर डायनासोर्स की चमड़ी आज के घड़ियालों-मगरमच्छों जैसी रही होगी, चकत्तेदार, टाइल्स वाली. जैसे कि सींग वाले डायनासोर 'ट्राईसेराटॉप्स' की चमड़ी और, उनका रंग कैसा रहा होगा?

वैज्ञानिकों ने जीवाश्मों से जो सबूत जुटाए हैं, उनसे इस बारे में भी कुछ संकेत मिलते हैं. जैसे समुद्री डायनासोर, इक्थियोसॉर की चमड़ी के बारे में कहा जाता है कि उसकी गहरी काले रंग की त्वचा रही होगी.


इसी तरह पंखों वाले डायनासोर, 'सिनोसारोप्टेरिक्स' के कंकाल से उसके शरीर पर धारियां होने के संकेत मिलते हैं. वैज्ञानिक मानते हैं कि ज़्यादातर डायनासोर्स की चमड़ी या तो अख़रोट के रंग की या गहरे लाल-भूरे रंग की रही होगी. हालांकि पक्के तौर पर अभी भी कुछ कहने से ज़्यादातर वैज्ञानिक बचते हैं.

अगला सवाल जो ज़ेहन में आता है वो ये है कि आख़िर डायनासोर्स आवाज़ें कैसे निकालते होंगे? नई तकनीक और कंकालों की मदद से वैज्ञानिकों ने इस सवाल का जवाब ढूंढने की भी कोशिश की है.

लैब में कंप्यूटर पर डायनासोर के सिर के मॉडल बनाकर वर्चुअल तरीक़े से उनसे हवा गुज़ारी गई. ऐसा लगता है कि डायनासोर्स या चिग्घाड़ते रहे होंगे या दहाड़ने जैसी आवाज़ उनके मुंह से निकलती रही होगी.

अभी भी वैज्ञानिकों के हिसाब से ये सब कोरी कल्पना ही है. फ़िल्म जुरैसिक पार्क में मशहूर टायरैनोसारस रेक्स की आवाज़ के लिए हाथी के बच्चे के चिग्घाड़ने की आवाज़ को कुछ दूसरे ग़ुर्राने वाले जानवरों की आवाज़ से मिलाकर नई आवाज़ तैयार की गई थी.

डायनासोर्स ने अपने ख़ात्मे से पहले धरती पर बहुत से निशान छोड़े. जैसे उनके कंकाल, उनके पैरों के निशान.

इनकी मदद से उनकी चाल के बारे में भी वैज्ञानिक अंदाज़ा लगा रहे हैं कि वो कितनी तेज़ी से चलते थे? दौड़ते थे या फिर उछल-कूदकर चलते थे, या थोड़ी दूर उड़ भी लेते थे? कंकालों की मदद से इन सवालों के जवाब तलाशे जा रहे हैं.

अभी हाल में अमरीकी वैज्ञानिक मार्टिन लॉकली को डायनासोर्स के बारे में कुछ दिलचस्प सबूत मिले हैं. कोलोराडो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक मार्टिन को डायनासोर के पंजों से ज़मीन खोदने के सबूत मिले हैं. इससे ये भी लगता है कि अपनी मादा साथियों को रिझाने के लिए नर, अपने घोंसले बनाने की क़ाबिलियत की नुमाइश, इस तरह ज़मीन खुरचकर करते रहे होंगे.

डायनासोर्स के सेक्स संबंधों पर लंदन की क्वीन मेरी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने भी काफ़ी रिसर्च की है. इसके मुताबिक़, छोटे क़द के डायनासोर प्रोटोसेराटॉप्स की गर्दन के इर्द-गिर्द चमड़ी की एक झालर जैसी होती थी. इसके बारे में यही अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि ये भी डायनासोर के यौन संबंध में काम आते थे.

पिछले तीस-चालीस सालों में तमाम कंकालों, नए अवशेषों की मदद से वैज्ञानिकों को लाखों साल पहले की डायनासोर्स की दुनिया समझने में काफ़ी मदद मिली है.

हले तो वैज्ञानिकों को ये उम्मीद ही नहीं थी कि उन्हें डायनासोर्स के ज़्यादा जीवाश्म या कंकाल मिलेंगे. मगर अमरीका के मोंटाना में 'एग माउंटेन' की खोज के बाद तस्वीर पूरी तरह से बदल गई.

लंदन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम के पॉल बैरेट कहते हैं कि आज इतनी जानकारी उपलब्ध है कि हम डायनासोर्स की दुनिया की सही-सही तस्वीर बना सकते हैं. वो, डायनासोर आर्ट पर काम करने वालों को सलाह देते हैं कि डायनासोर्स के वक़्त दुनिया में इतना पानी नहीं था, वो सूखे माहौल में रहते थे.

उनको डायनासोर्स की तस्वीरों में पानी वाला माहौल नहीं दिखाना चाहिए. डायनासोर्स को दलदल या झीलों के बैकग्राउंड के साथ उकेरना सच के क़रीब नहीं लगता. इसी तरह ऐसी तस्वीरों में ज्वालामुखियों की तादाद भी बहुत ज़्यादा है. इतने ज्वालामुखी धरती पर पाए ही नहीं जाते.

अब तक जुटाई गई जानकारी के बल पर ये तो तय है कि डायनासोर्स एकदम अनूठे क़िस्म के जानवर थे, जो धरती पर इंसान के पैदा होने के लाखों बरस पहले रहते थे. हालांकि अपने विनाश के साथ ही वो बहुत से राज़ भी अपने साथ लेते गए.

फिर भी, आज उनके कंकालों, क़दमों के निशान, मल के अवशेषों से मिले सुराग़ों से उनके बारे में हमारी समझ बेहतर हुई है. वक़्त के साथ, उनके बारे में हमारी समझ और बढ़ेगी.

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